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Literature News: प्रगतिशील लेखक संघ के 90वां स्थापना दिवस पर काव्य पाठ से गूंजा सभागार, उपलब्धियों पर हुई चर्चा

Literature News: वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ का 90वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ भोजपुर इकाई एवं हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में एकदिवसीय विचारगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन हुआ। आयोजन के मुख्य अतिथि वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो मृत्युंजय सिंह, विशिष्ट अतिथि जनवादी लेखक संघ के राज्याध्यक्ष प्रो नीरज सिंह एवं भोजपुरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो दिवाकर पाण्डेय रहे। आयोजन की अध्यक्षता प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव प्रो रवींद्र नाथ राय ने किया।

प्रगतिशील आंदोलन की उपलब्धियों पर हुई चर्चा

प्रथम सत्र में आयोजित विचारगोष्ठी का विषय प्रगतिशील आंदोलन की उपलब्धियाँ था। विषयक चर्चा करते हुए मुख्य वक्ता हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो मृत्युंजय सिंह ने बताया कि साहित्य जगत के सितारे मुंशी प्रेमचंद ने प्रगतिशील लेखक संघ की तब अध्यक्षता की थी जब वे समाज में असहाय ग़रीबों की हकमारी व कई प्रकार के दमन देख रहे थे और जानते थे इसके लिए लेखकों की लेखनी को सम्बल देना ज़रूरी है।

प्रो नीरज सिंह ने बताया कि वह अशांत समय था, शांति और सौहार्द की स्थापना की सोच के साथ उस वक्त के तमाम साहित्यकारों ने मिलकर ऐसा संगठन बनाने का प्रयास किया जहां सब खुल के अपनी बाते कह सके। समाज को एक सही रास्ता दिखा सके। प्रगतिशील लेखकों का समूह वंचितो की आवाज़ बना। हमारे यहाँ लगभग 85 प्रतिशत आबादी गरीब, वंचित और कामगारों की है। इन्हें जातिगत या किसी आधार पर बाँटा नहीं जा सकता, ये किसी समूह किसी सम्प्रदाय से हो सकते है। पर, संसाधनो पर हक़ जमाकर सिर्फ़ 15 प्रतिशत वाले लोग बैठे है। ऐसे में वंचित लोगों की आवाज़ उठाने के लिए संगठन बनते है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी और लेखकों की एकजुटता के लिए प्रगतिशील लेखक संघ की हुई स्थापना- प्रो रवीन्द्र नाथ राय

अध्यक्षता कर रहे प्रलेस के राज्य सचिव प्रो रवीन्द्र नाथ राय ने प्रगतिशील लेखक संघ की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रिटिश हुकूमत ने साहित्यिक गतिविधियों पर रोक लगा रखी थी। कई पत्र- पत्रिकाओं और अखबारो के दफ़्तर बंद करा दिए गए थे। फ़ासिवाद व पूंजीवाद के ख़िलाफ़, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लेखकों की एकजुटता के लिए प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। साहित्यकारों ने आम लोगों में नायक ढूँढे।

लेखक हमेशा प्रगतिशील रहता है – जनार्दन मिश्र

प्रलेस भोजपुर इकाई के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि लेखक हमेशा प्रगतिशील रहता है। प्रगतिशीलता एक परंपरा है। ये पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा। भोजपुर ज़िले में बहुत सहित्यप्रेमी है। नवोदित लेखक- कवि भी बहुत अच्छा कर रहे है। हमलोग उन्हें संगठन के साथ जोड़ आगे बढ़ाते रहेंगे। विचार गोष्ठी के इस प्रथम सत्र का संचालन करते हुए प्रलेस के ज़िला सचिव प्रो नवनीत राय ने कहा कि संगठन शक्ति का परिचायक है और लेखकों को सत्य लिखने व तंत्र के सामने मज़बूती से खड़ा रखने के लिए यह ज़रूरी है।

वरिष्ठ कवियों की संगत में युवा कवि- कवियित्रियों ने भी सुनाई अपनी रचनाएँ

आयोजन के दूसरे सत्र में शहर के जाने माने कई वरिष्ठ और कई युवा कवि- कवियित्रियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। वरिष्ठ कथाकार एवं कवि प्रो नीरज सिंह ने अपनी बेहतरीन रचना “जो जो मन में आए लिख दो सब कुछ बिन शर्माए लिख दो” से सबको प्रभावित किया। वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्रा ने अपनी प्रसिद्ध रचना “यह सांपों का शहर है साहब जी, यह सांपों का शहर है” सुनाई। प्रो दिवाकर पांडे ने अपनी रचना “कौन कसूर भइले हमरा से, काहे सुनी ला गरिया हो” सुनाई।

सृजनलोक के सम्पादक वरिष्ठ कवि संतोष श्रेयांश ने विद्यार्थियों की चिंता को समझते हुए अपनी कविता “सुसाइड नोट” सुनाई। वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश मिश्र ने अपनी रचना “कहना चाहता हूं महानुभाव सुने” सुनाई। वहीं, वरिष्ठ कवियित्री मधुलिका सिन्हा ने रंगभेद व लिंगभेद पर आधारित अपनी रचना “करियट्ठि” सुनाई।

सामाजिक सरोकारों पर सोचने वाले डॉ जितेंद्र शुक्ल ने अपनी रचना “इंसान कठपुतली मात्र” सुनाया। तो वहीं, कवि राकेश गुड्डू ओझा ने अपनी रचना “बांधते हो जिस बंधन में वह बंधन हमें स्वीकार नहीं” और “शब्द सार्थक ना हुए, ब्रम्हाण्ड में कही खो गए” सुनाया।

हरेंद्र सिंह ने अपनी रचना “उड़ान भर रही बेटियां”, रवि शंकर सिंह ने “किस्सा बचपन का“ और अरविंद कुमार सिंह ने बटोहिया के तर्ज पर कुंवर सिंह की गाथा का पाठ किया।

कवि जन्मेजय ओझा “मंजर” ने अपनी रचना “कहां थे पार्थ” सुनाई। कवियित्री पूनम पांडे ने “यह कैसी आजादी” सुनाई तो कवियित्री शालिनी ओझा ने उन्मुक्त कंठ से सस्वर कविता पाठ किया।

युवा कवि दीपक सिंह निकुंभ ने “सबको घेरे जिम्मेदारी है, शुगर बीपी की बीमारी है” कविता सुनाई। वहीं, युवा कवि जय मंगल मिश्र ने अपने सुरीले अंदाज में “कितने शब्द रह गए अधूरे” कविता का सस्वर पाठ किया।

काव्य मंच का संचालन कर रहे पत्रकार रूपेंद्र मिश्र ने अपनी रचना “विकास के नाम पर उजाड़ दी जाती हैं कई जिंदगियां” सुनाई।

समापन व धन्यवाद ज्ञापन करते हुए महिला कॉलेज की पूर्व प्राचार्या डॉ कमल कुमारी ने कहा की लेखक या कवि वही लिखता है, जो वह अपने आसपास देखता है, इसलिए हमें सकारात्मक चीजें देखनी चाहिए। हमारे आसपास कई सकारात्मक ऊर्जा है, हमें उसे ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए।

आयोजन में डॉ कमल कुमारी सिंह, नेत्री मधु मिश्रा, कंचन सिंह, डॉ कौशल्या शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी कृष्णा यादव कृष्णेंदु, जनमेजय ओझा, आशुतोष कुमार पाण्डेय, रवि शंकर सिंह, दीपक सिंह, जयमंगल, मनोज ओझा, हरेंद्र सिंह, अरविंद सिंह समेत सैकड़ों श्रोता थे। आयोजन को सफल बनाने में आनंद, समीक्षा समेत हिंदी विभाग के कई छात्र- छात्राओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा।

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