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Kavitai Sangoshthi: रिमझिम बारिश की फुहारों संग चली कविताई, संगोष्ठी में कवि- कवयित्रियों ने सुनाई एक से बढ़कर एक रचनाएँ

Kavitai Sangoshthi: भोजपुर ज़िले की तेज़ी से उभरती हुई साहित्यिक संस्था “कविताई” के बैनर तले रविवार को काव्य संगोष्ठी सह बैठक आयोजित की गई। आरा शहर के चंदवा स्थित रेनबो किड्स प्ले स्कूल प्रांगण में यह आयोजन हुआ, जहां कई वरिष्ठ एवं युवा कवि- कवयित्रियों ने अपनी प्रस्तुति दी।

कविताई संस्था की अध्यक्षा कवयित्री मधुलिका सिन्हा की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम के प्रथम सत्र में आम बैठक की गई। बैठक में आगामी योजनाओं को लेकर चर्चा हुई। साथ हीं यह निर्णय लिया गया कि संस्था हमेशा नवोदित कवियों को मंच देगी। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि “कविताई” से जुड़े सभी सदस्य साहित्य के क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहे है। युवा कवि- कवयित्रियों के इतने उम्दा लेखन को देखकर लगता है की हमारे शहर की मिट्टी जितनी पहले उर्वर थी, उतनी हीं आज भी है। सभी बहुत अच्छा लिख रहे है और प्रस्तुति भी काफ़ी अच्छी होती है। वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि संस्था को उदार हृदय का होना चाहिए। सभी को जोड़कर चलना चाहिए। सृजनलोक के सम्पादक वरिष्ठ कवि संतोष श्रेयांश ने कहा कि “कविताई” के सभी सदस्यों को मै सुनते आ रहा हूँ। इनके लेखन में गहराई है। सभी अच्छा कर रहे है और इनलोगों में सीखने की प्रवृति है, जो बहुत अच्छी बात है। संस्था के उपाध्यक्ष डॉ जितेंद्र शुक्ल ने सभी अतिथियों के सलाह का स्वागत किया तथा कहा कि आप सबके सहयोग से संस्था हमेशा आगे बढ़ कर साहित्य की सेवा करेगी।

कविताओं के नाम रहा दूसरा सत्र

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आमंत्रित कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने वर्तमान समय के संदर्भ में अपनी रचना “सम्भल के रहना कि अभी हवा गर्म है” सुनाई। वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश मिश्र ने जीवन की कठिनाइयों पर रचित अपनी कविता “ऐसे कठिन समय में जिया जाए कैसे, जीवन अगर ज़हर है तो पिया जाए कैसे” सुनाकर सबको खूब प्रभावित किया।

वरिष्ठ कवि संतोष श्रेयांश ने बलात्कार जैसी घटनाओं के पीछे छिपे दर्द और वैसे वक्त में समाज की सच्चाई को आइना दिखाती अपनी रचना सहजता से प्रस्तुत कर सभी को अंदर तक झंकझोर दिया। कवयित्री मधुलिका सिन्हा ने पति- पत्नी के संबंधो के उतार चढ़ाव को समेटे हुए अपनी रचना “तुम भी समझो ना प्रिय” सुना सबको प्रभावित किया।

डॉ जितेंद्र शुक्ल ने आज के समाज में तेज़ी से उभरते स्वघोषित समाजसेवियों पर कटाक्ष करती अपनी रचना प्रस्तुत की। वहीं, भोजपुरी के मंझे हुए कवि जन्मेजय ओझा मंजर ने अपनी लयबद्ध रचना “बात ही बात के क़त्लखाना मिले” सुनाकर सबकी खूब वाह- वाही बटोरी।

कवि राकेश गुड्डु ओझा ने अपने अंदाज़ में “तेरा इश्क़ बहुत महँगा है, मुझपे उधार रहने दो” सुना सभागार से खूब तालियाँ बटोरी। वहीं, कवि आशीष उपाध्याय ने अपनी गंभीर रचना “हद में रह ए ख़ुशी की लोग जलने वाले है” सुनाई।

युवा कवि विकास कुमार पांडेय ने शहर की ख़राब व्यवस्था पर कुठाराघात करती अपनी रचना “बारिश ने बिगाड़ा शहर का सूरत-ए- हाल” सुना सभी को खूब प्रभावित किया। राहुल सिन्हा ने बाल हठ पर अपनी रचना “तवे से उतरती हुई रोटी” प्रस्तुत की। नवोदित कवि हीराकांत ओझा ने ग्रामीण जीवन को समेटे हुए अपनी रचना “चलो ले चलूँ गाँव की ओर” सुना सबको प्रभावित किया।

कार्यक्रम का संचालन पत्रकार व युवा कवि रूपेन्द्र मिश्र ने किया। उन्होंने राजनीति से आम वर्ग को जोड़ती हुई अपनी रचना “वक्त ये चुनाव का हीं लग रहा” प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन कवि आशीष उपाध्याय ने किया।

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