Bihiya Chakbandi Office: साहब ना ज़मीन पर गए… ना दोनो पक्ष को बुलाया… बस दे रहे एकतरफ़ा फ़ैसला!
बिहियां के चकबंदी कार्यालय में ऐसा ही एक मामला लेकर पहुँचे मो कलीम ने बताया कि यहाँ कोई काम बिना पैसे के नहीं हो पाता और पैसा दीजिए तो ग़लत को भी सही बना दिया जाता है। उन्होंने एक खतियान दिखाते हुए बताया की इसपर साफ़ दर्ज है की एक पक्ष का हिस्सा ज़्यादा है और एक पक्ष का कम। फिर भी कम हिस्से वाले हिस्सेदार के नाम पर ज़मीने चढ़ा दी जा रही है। ऐसे फ़ैसले लेने से पहले साहब उक्त ज़मीन पर नहीं जाते, दोनो पक्ष को बुलाया भी नहीं जाता, हमलोग कुछ बात करने आते है तो बात नहीं सुनी जाती। ग़लत फ़ैसला कर दिया जाता है।
इस बाबत जब चकबंदी पदाधिकारी राकेश राय से बात की गई तो उनकी झुँझलाहट साफ़ नज़र आने लगी। उन्होंने बताया कि कोई संतुष्ट नहीं है तो ऊपर के अधिकारी से जाकर मिले। उक्त मामले का हवाला देते हुए जब उनसे पूछा गया तो पहले तो उन्होंने “मेरे समय का मामला नहीं है” कहकर पल्ला झाड़ना चाहा। जब बात यह आई की वर्तमान में उनकी उपस्थिति में कैसे हो रहा तब उन्होंने माना की मै ज़मीन पर नहीं गया था। अमीन गया था। अगली बार मै स्वयं जाकर देखूँगा। दोनो पक्ष को बुलवा लिया जाएगा। कुछ ग़लत होगा तो सुधार किया जाएगा।
उसी क्रम में द्वितीय पक्ष के आवेदक भी चकबंदी पदाधिकारी कार्यालय के अंदर पहुँच गए। उनसे पूछने पर कि वह अचानक वहाँ कैसे पहुँचे, उन्होंने कहा कि मै अन्य काम से आया था। हालाँकि, उनका अचानक वहाँ पहुँचना संशय पैदा कर रहा था। प्रथम पक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा कि इनको कार्यालय से ही सूचना दी गई, यहाँ सब काम मिलीभगत से होता है।
अपने ज़मीन के काम से गए उमेश यादव ने कहा कि यहाँ कोई काम बिना लेनदेन के नहीं होता है। पैसा लेकर ग़लत को भी सही बना दिया जाता है। मो कलीम ने कहा कि अनुबंधित कर्मी के तौर पर आए अमीन यहाँ पिछले २२ सालों से कार्यरत है। वह यहाँ खुद को हीं अधिकारी समझता है। बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करता और ग़लत काम में भी कहता है की मेरा ऊपर तक पहुँच है, करा दूँगा।
ऑफ़िस में कार्यरत एक कर्मी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा की अमीन खुद को हीं यहाँ अधिकारी समझता है। ऑफ़िस में किसी के भी काम में दख़ल देता है। अपना रसूख़ दिखाता है।
बहरहाल, ज़मीन से जुड़े मामलों में कई अपराध सामने आते है। ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले अपराधों में मुख्यतः ज़मीन सम्बन्धी मामले होते है। ऐसे में प्रखंड, अंचल व चकबंदी जैसे सरकारी दफ़्तरों और पदाधिकारियों का कार्य और ज़िम्मेदारीपूर्ण हो जाता है। पर, अक्सर इन कार्यालयों के चक्कर काटती जनता खुद को मजबूर, असहाय और लूटी हुई महसूस करती है।

